Q. What is the difference between human Souls and Supreme Soul God Shiva ?
The Difference Between Human Souls and Supreme Soul Shiva !
मनुष्य आत्माओं और परमात्मा का भेद . .
ब्रह्म-लोक : आत्माओं और परमपिता परमात्मा का निवास स्थान |
हम सभी आत्मा निराकार होती हैं अर्थात हमारा कोई आकर नहीं होता पर हम एक ज्योति बिंदु सवरूप चेतन्य शक्ति हैं। हम सभी आत्माओं मे ये समानता है : हमारे पास तीन सूक्षम शक्तियां होती हैं जो की मन, बुद्धि और संस्कार हैं। सभी आत्माओं के पास यह शक्तियां होती हैं पर आत्मा को सोचने, समझने और कार्य करने के लिये शरीर की आवशकता होती है। बिना शरीर के आत्मा जैसे की शांत सवरूप बिना किसी संकल्प के उड़ते पंछी के सामान है। वैसे तो परमपिता परमेश्वर परमात्मा शिव भी हमारे ही जैसे एक ज्योति बिंदु सवरूप चेतन्य शक्ति हैं पर वह सभी शक्तियों के स्त्रोत हैं। हम आत्माओं के कहीं गुण होते हैं जैसे : शांति, प्रेम, पवित्रता, ख़ुशी, आनंद, सचाई, और शक्तियां। परमपिता परमात्मा इन सभी शक्तियों से परिपूर्ण सम्पूर्ण हैं। हम आत्मा जन्म-मरण के बंधन मे बंधी हैं इसीलिए हम अपनी इन शक्तियों को अपने लगातार जन्म लेने के कारण खोती रहती हैं। पर परमपिता परमात्मा सदा शिव सदा परम-धाम/शांतिधाम मे वास करते हैं और समयचक्र के अंत मे यानि कलयुग के अंत मे मनुष्य तन मे प्रवेश लेकर इस इस कलयुगी दुनिया का विनाश करने और नयी दुनिया सतयुग की रचना करने के लिये अपना ज्ञान मनुष्य-आत्माओं को देतें हैं और उस मनुष्य को वह ब्रह्मा नाम देते हैं और उनके मुख से ज्ञान सुनने वाले मनुष्य "ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्मण" कहलाएं जाते हैं।
यह परमपिता परमात्मा शिव और मनुष्य आत्माओं मे अंतर हैं :
मनुष्य आत्मा : हम आत्माएं जन्म-मरण के चक्र मे आती हैं और कलयुग के अंत तक जन्म-मरण का चक्र लगाती हैं।
परमपिता परमात्मा शिव : वह कभी जन्म-मरण के चक्र मे नहीं आते।
मनुष्य आत्मा : हम आत्माएं जो भी याद करती हैं वह उस जन्म के अंत मे भूल जाती हैं। पर हम जो याद करती हैं उसको याद करने के कारण हमारे संस्कार जैसे बनते जाते हैं उसी के अनुसार हमारा अगला जन्म होता है।
परमपिता परमात्मा शिव : परमपिता परमात्मा शिव कभी भी जन्म-मरण मे नहीं आते न ही वह कुछ भूलते हैं न ही उनको कुछ याद करने की आव्यशकता है। वह तो सर्व-ज्ञानी हैं, उनको सम्पूर्ण ज्ञान है, उनको सृष्टि के आदि, मध्य और अंत का सम्पूर्ण ज्ञान है।
मनुष्य आत्मा : मनुष्य आत्माओं मे बदलाव आता है, उनके संस्कार जन्म-मरण के साथ बदलते रहतै हैं - उनकी शांति, प्रेम, आनंद, दुःख, सुखः और इस्थिति मे बदलाव आता है।
परमपिता परमात्मा शिव : परमपिता परमात्मा शिव मे कोई भी बदलाव नहीं आता, वह तो सदा एक रस सम्पूर्णता मे शांति-धाम मे वास करते हैं।
मनुष्य आत्मा : मनुष्य आत्मा शारीरिक शरीर मे प्रवेश करती हैं इसी लिये उनको शरीर होता है।
परमपिता परमात्मा शिव :परमपिता परमात्मा शिव को आपने कोई स्थूल शरीर नहीं होता वह तो आपने ज्ञान ही ब्रह्मा के तन मे प्रविष्ट होकर दैतैं हैं।
मनुष्य आत्मा : मनुष्य आत्मा कभी भी आत्माओं की सद्गति नहीं कर सकती। ज्यादा ज्ञान वान हो सकती हैं या दूसरी आत्माओं को धरती पर जीवन जीने का सही रास्ता बता सकती हैं पर किसी भी मनुष्य आत्मा को यह ज्ञान नहीं है की आत्माओं की सद्गति कैसे होती है।
परमपिता परमात्मा शिव :परमात्मा शिव ही सद्गति दाता हैं और वह ही ब्रह्मा द्वारा यह ज्ञान देतें हैं की मनुष्य आत्माओं की सद्गति कैसे होती है। वह ही यह बताते हैं की आत्मा जब आत्मिक इस्थिति मे रहकर मुझ को याद करती हैं तो उस आत्माओं के जन्मों-जन्मों के विकर्म विनाश होतें हैं।
मनुष्य आत्मा : मनुष्य आत्मा शरीर मे प्रवेश करती हैं और जब उनकी शक्तियां शीणं हो जाती हैं तो वह शारीरिक भान मे आकर विकारी बनती जाती हैं।
परमपिता परमात्मा शिव : पिता शिव को कोई शरीर नहीं होता, वह तो कलयुग के अंत मे आत्माओं को पवित्र आत्मा बनने का रास्ता बताते हैं।
मनुष्य आत्मा : मनुष्य आत्माओं को सिर्फ वर्तमान समय का ज्ञान है, न उनको पूर्व और न उनको भविष्य का सही सही ज्ञान है।
परमपिता परमात्मा शिव : परमपिता शिव को ही सृष्टि के आदि, मध्य और अंत का सम्पूर्ण ज्ञान होता है। वह ही आकर हमको बताते हैं की यह सृष्टि चक्र कैसे घूमता रहता है।
मनुष्य आत्मा : मनुष्य आत्मा परमपिता शिव से ज्ञान और शक्तियां लेती हैं।
परमपिता परमात्मा शिव : परमपिता सम्पूर्ण हैं वह तो हमको दैतैं ही हैं हमसे कुछ भी नहीं लेते।
वर्तमान समय पुरुषोत्तम संगमयुग का समय है। इस समय परमपिता परमात्मा शिव अपना ज्ञान मनुष्य आत्माओं को ब्रह्मा कए द्वारा दे रहें हैं। इस ज्ञान को प्राप्त करने कए लिये ब्रह्मा कुमारिस कए आश्रम मै पहुँच कर यह ज्ञान उठायें। याद रखें - समय बहुल मूलयवान है। अभी नहीं तो कभी नहीं। आपकै नजदीकी आश्रम की जानकारी कए लिये पिक्चर पर क्लिक करें।
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